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क्या बच सकती थी जयललिता की जान? जांच रिपोर्ट ने खड़े किए कई सवाल, जानें शक के घेरे में कौन-कौन

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जयललिता

जयललिता
– फोटो : अमर उजाला

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तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता की मौत के रहस्य से पर्दा उठने लगा है। इसकी जांच के लिए बनाई गई कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। जस्टिस ए अरुमुघसामी कमेटी की ये रिपोर्ट 475 पन्नों की है। इसमें 172 गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं। रिपोर्ट में कई खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जयललिता की जान बचाई जा सकती थी, लेकिन जानबूझकर उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया। इस रिपोर्ट में कई लोगों की भूमिका सवालों के घेरे में है। इलाज करने वाले डॉक्टर्स से लेकर जयललिता की सहेली और तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्रियों तक पर सवाल उठ रहे हैं।

ऐसे में हम आपको जयललिता की मौत की पूरी कहानी बताएंगे। कैसे जयललिता की मौत हुई थी? कौन-कौन उनकी मौत हो लेकर संदेह के घेरे में है? रिपोर्ट में क्या-क्या कहा गया है? आइए जानते हैं…
 
कब और कैसे हुई जयललिता की मौत? 
22 सितंबर 2016 को बीमार होने पर जयललिता को चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह 75 दिन तक वह अस्पताल में रहीं और पांच दिसंबर 2016 को उनकी मौत हो गई। जयललिता के निधन के बाद उनकी भतीजी दीपा और उनके भतीजे दीपक समेत AIADMK के कई नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री की मौत की परिस्थितियों को लेकर सवाल उठाए थे। 2017 में इसकी जांच के लिए एक कमेटी बनाई गई। जिसकी रिपोर्ट अब सामने आई है। इस रिपोर्ट में भी कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। 
 
जांच रिपोर्ट में क्या-क्या कहा गया? 
सबसे पहले जयललिता की मौत की असली तारीख को लेकर विवाद उठा। हॉस्पिटल ने जो बुलेटिन जारी किया था उसके अनुसार, जयललिता की मौत पांच दिसंबर 2016 की रात 11:30 को हुई थी। जयललिता की देखभाल करने के लिए लगी नर्स, तकनीशियन व कुछ अन्य हॉस्पिटल स्टाफ ने जांच कमेटी को बताया कि चार दिसंबर 2016 की दोपहर 3.50 से पहले ही उनका कार्डिक फेल्योर हुआ था। तब उनके हृदय में कोई इलेक्ट्रिक एक्टिविटी नहीं हो रही थी। ब्लड सर्कुलेशन भी रुक गया था। 

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि जयललिता को सीपीआर भी देरी से दिया गया। 3.50 से पहले उनका कार्डिक फेल्योर हुआ था, जबकि उन्हें सीपीआर 4.20 पर दिया गया। तब तक उनका निधन हो चुका था। जांच रिपोर्ट के अनुसार, इससे पता चलता है कि चार दिसंबर की शाम 3.50 पर ही जयललिता दम तोड़ चुकीं थीं। 

कमेटी के सामने पेश होने वाले गवाहों में AIADMK के नेता ओ पन्रीरसेल्वम, जयललिता की भतीजी दीपा, भतीजे दीपक, डॉक्टर्स, तमिलनाडु के टॉप रैंक के तत्कालीन अधिकारी, तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सी विजयभास्कर, एम थंबी दुरई, सी पोन्नियिन, मनोज पांडियन और जयललिता की देखभाल में लगाए गए सभी हॉस्पिटल स्टाफ शामिल थे।

 
जांच कमेटी ने किन-किन लोगों पर सवाल उठाए? 
जस्टिस ए अरुमुघसामी कमीशन की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कई लोगों के बयानों का जिक्र किया है। इसके आधार पर जयललिता की करीबी सहयोगी रहीं शशिकला पर सबसे पहले सवाल खड़े हुए हैं। इसके अलावा जयललिता के निजी डॉक्टर केएस शिवकुमार (शशिकला के रिश्तेदार), उस समय के स्वासथ्य सचिव जे. राधाकृष्णनन और तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सी विजयभास्कर, अस्पताल में जयललिता का इलाज करने वाले डॉक्टर वाईवीसी रेड्डी, डॉ. बाबू अब्राहम, अपोलो हॉस्पिटल के चेयरमैन प्रताप रेड्डी, पूर्व चीफ सेक्रेटरी राम मोहन राव, पूर्व सीएम पन्नीरसेल्वम की भूमिका को संदेह के घेरे में रखा गया है। जांच कमेटी ने इन सभी की भूमिका की जांच कराने की सिफारिश की है। 
 
शशिकला पर क्या-क्या आरोप लगे हैं? 
जयललिता की सबसे करीबी सहयोगी शशिकला पर ही सबसे ज्यादा गंभीर आरोप लगे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, शशिकला ने जानबूझकर जयललिता का सही से इलाज नहीं कराया। केवल वह ही जयललिता के कमरे तक जा सकती थीं। उन्हें ही सारे डॉक्टर अपनी रिपोर्ट देते थे। जयललिता के अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान सारे कंसेंट फॉर्म पर शशिकला ने ही हस्ताक्षर किए थे। डॉक्टर्स ने शशिकला को ही जयललिता की सारी बीमारी के बारे में बताया था और इलाज के तरीकों को लेकर भी जानकारी दी थी। आरोप है कि डॉक्टर्स की कई सलाह को उन्होंने नजरअंदाज कर दिया, जिससे समय रहते जयललिता का सही इलाज नहीं हो पाया। 

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि जब जयललिता होश में थीं, तब अमेरिका के कार्डियो सर्जन डॉ. समीन शर्मा ने एक अहम कार्डिक सर्जरी कराने की सलाह दी थी। उन्होंने कहा था कि जयललिता की जान बचाने के लिए ये कार्डिक सर्जरी जरूरी थी। उस वक्त जयललिता होश में थीं और उन्होंने इसके लिए खुद मंजूरी दी थी। डॉ. समीन ने जयललिता की ये जांच 25 नवंबर 2016 को की थी। 

रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञ डॉक्टर्स ने जयललिता का विदेश में इलाज कराने की सलाह दी थी, लेकिन शशिकला के साथ-साथ तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सी विजयभास्कर, पूर्व स्वास्थ्य सचिव जे राधाकृष्णन, जयललिता के डॉक्टर शिवकुमार ने मना कर दिया। 
 
रिपोर्ट में और किन-किन पर क्या आरोप लगे हैं? 

  • जांच रिपोर्ट में जयललिता का इलाज करने वाले डॉ. वाईवीसी रेड्डी और डॉ.बाबू अब्राहम को भी संदेह के घेरे में रखा गया है। इन पर आरोप है कि उस दौरान मुंबई, अमेरिका और ब्रिटेन से भी डॉक्टरों को बुलाया गया था और इन डॉक्टरों को जयललिता की एंजियो/सर्जरी कराने की सलाह मिली थी, लेकिन अपना मकसद हासिल करने के लिए उन्होंने दबाव में इसे टाल दिया।  
  • अपोलो हॉस्पिटल के चेयरमैन सी प्रताप रेड्डी भी इसमें फंसते हुए नजर आ रहे हैं। नवंबर 2016 में जब जयललिता हॉस्पिटल में भर्ती थीं तब प्रताप रेड्डी ने मीडिया को बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि जयललिता का इंफेक्शन अंडर कंट्रोल है और ‘डिस्चार्ज होना उनकी मर्जी पर निर्भर करता है।’ 
  • जांच कमेटी के अनुसार, मेडिकल रिकॉर्ड्स और डॉक्टर्स से मिली जानकारी के अनुसार, ‘रेड्डी के शब्द सच्चाई से कोसों दूर थे।’ कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ‘ये हैरान करने वाला है कि इतने प्रसिद्ध हॉस्पिटल के प्रमुख ने मीडिया को इतना गैर-जिम्मेदाराना बयान दिया था। क्या उन पर इस तरह का झूठा बयान देने का कोई दबाव था?’ 
  • तत्कालीन मुख्य सचिव राम मोहन राव को लेकर भी जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में टिप्पणी की है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘प्रोसिजिरल पहलुओं को लेकर विभिन्न तारीखों से जुड़े 21 फॉर्म पर उनके साइन करने की भी जांच की जानी चाहिए।’
  • जयललिता की मौत पर पन्नीरसेल्वम ने सबसे पहले सवाल उठाया था, हालांकि जांच रिपोर्ट में उनपर भी गंभीर आरोप लगे हैं। कमेटी ने कहा, ‘वो इनसाइडर और एक मूक दर्शक थे। वो सब जानते थे कि अपोलो हॉस्पिटल में क्या हुआ, खासतौर पर इलाज के दौरान होने वाली गतिविधियां उन्हें मालूम थीं। लेकिन तब तक वह चुप रहे। पहले वह मुख्यमंत्री बने और जब पद से हटना पड़ा तो उन्होंने सीबीआई जांच की मांग की।’

रिपोर्ट को लेकर शशिकला ने क्या कहा? 
जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद विवादों में घिरीं शशिकला ने तीन पन्नों का बयान जारी किया। इसमें उन्होंने खुद पर लगे सारे आरोपों को खारिज कर दिया। कहा कि मैं सभी तरह की जांच के लिए तैयार हूं। आगे उन्होंने अपने विरोधियों पर भी पलटवार किया। शशिकला ने कहा, ‘जिनमें जयललिता से मुकाबला करने की हिम्मत नहीं थी, वे उनकी मौत पर राजनीति कर रहे हैं, लेकिन जनता ऐसी हरकतों का समर्थन नहीं करेगी।’

आगे उन्होंने कहा, ‘कमेटी की जांच के परिणाम अनुमानों पर आधारित हैं। अम्मा (जयललिता) के इलाज में मैंने एक बार भी दखल नहीं दिया। सारे फैसले मेडिकल टीम ले रही थी। कब कौन सा टेस्ट करना है? कौन सी दवा देनी है? इलाज में क्या होगा? ऑपरेशन होना है या नहीं? ये सबकुछ डॉक्टर्स तय कर रहे थे। मैं सिर्फ यह देख रही थी कि अम्मा को सबसे अच्छा इलाज मिले।’

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तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता की मौत के रहस्य से पर्दा उठने लगा है। इसकी जांच के लिए बनाई गई कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। जस्टिस ए अरुमुघसामी कमेटी की ये रिपोर्ट 475 पन्नों की है। इसमें 172 गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं। रिपोर्ट में कई खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जयललिता की जान बचाई जा सकती थी, लेकिन जानबूझकर उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया। इस रिपोर्ट में कई लोगों की भूमिका सवालों के घेरे में है। इलाज करने वाले डॉक्टर्स से लेकर जयललिता की सहेली और तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्रियों तक पर सवाल उठ रहे हैं।

ऐसे में हम आपको जयललिता की मौत की पूरी कहानी बताएंगे। कैसे जयललिता की मौत हुई थी? कौन-कौन उनकी मौत हो लेकर संदेह के घेरे में है? रिपोर्ट में क्या-क्या कहा गया है? आइए जानते हैं…

 

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